मित्रो! पाठकनामा में आज प्रस्तुत है युवा कवि-कथाकार अर्पण कुमार के कविता संग्रह ’ मैं सड़क हूं’ पर समीक्षक उमेश चतुर्वेदी की समीक्षात्मक टिप्पणी
मैं सड़क हूं (काव्य संग्रह) - अर्पण कुमार
संभावनाशील कविताएं - उमेश चतुर्वेदी
कविताओं में चित्रों का संसार कोई नई बात नहीं है। लेकिन कविताओं को पढ़ते वक्त कूची के कमाल का आभास बहुत कम कविताओं के साथ ही हो पाता है। लेकिन अर्पण कुमार के ताजा संग्रह मैं सड़क हूं की कविताओं को पढ़ते हुए यह अनुभव बार.बार होता है। उनकी कविताओं में सड़क है, नदी है, स्त्री है, धूप है, कुआं है, चाकू है, खूंटी है, आम जिंदगी में रोजाना तकरीबन सबका इनसे राफ्ता पड़ता है लेकिन इन चीजों से भी संवेदना इतनी गहरे तक जुड़ी हो सकती है। इसे एक संजीदा कवि ही देख सकता है। अर्पण इन्हें देखने और उनके जरिए दर्द और उदासी भरी संवेदनाओं को उकेरने में कामयाब हुए हैं। मैं सड़क हूं संग्रह में कुल तैंतीस कविताएं हैं। लेकिन उनमें बुढ़ापे में अकेली होती मां भी है, उनका अपना पटना शहर भी है जिसे पीछे छोड़ आए हैं.....जिनके साथ उनकी सुंदर और संजीदा स्मृतियां जुड़ी हैं लेकिन अब लौटते वक्त उन्हें वह पुरानी उष्मा नहीं मिलती। शायद इसी के बाद उनकी कविता फूट पड़ती है। आजकल मैं पटना जंक्शन पर नहीं उतर रहा हूं। अर्पण के इस संग्रह में पिता की कवि छवियां हैं। पेंशनयाफ्ता की जिंदगी जीते पिता हैं, आश्वस्त पिता हैं असमय बूढ़े हो रहे पिता हैं लेकिन सबसे मार्मिक कविता है साठवें बसंत में कालकवलित हो चुके पिता....यह कविता जिंदगी के एक अंतहीन गह्वर में छोड़ जाती है। अर्पण के इस संग्रह में एक कविता है मजिस्टर राम का शरणार्थी यह लंबी कविता आजादी के पैंसठ साल बाद भी गांवों की बदहाली और वहां पिछड़े रह गए कमजोर लोगों की शहरों में शरणार्थी की तरह जिंदगी गुजारने की मजबूरी को मार्मिक तरीके से उठाती है। इस कविता को पढ़ने के बाद जिंदगी और विकास के दावे तार.तार होते जाते हैं। इस संग्रह की एक कविता इन दिनों मौजूं बन पड़ी है......महानगर में एक कस्बाई लड़की। इस कविता की कुछ पंक्तियां बेहद संभावनाशील हैं.लक्ष्मण रेखा के पार निकल पड़ी है वह अपने बड़े से जूड़े को कस असीमित आकाश को अपने आंचल में समेटने इस संग्रह की शीर्षक कविता है मैं सड़क हूं । यह कविता नए बिंब खड़ी करती है और बिंबों के जरिए संभावना के नए वितान भी तैयार करती है। तुम मुझे बनाते हो और फिर रौंदते हो अपने पैरों के जूतों अपनी गाड़ियों के पहियों और अपनी तेज अंतहीन रफ्तार से इन कविताओं को पढ़ने बाद लगता है कि अर्पण में काफी संभावनाएं हैं। कुल मिलाकर यह संग्रह बेहद पठनीय बन पड़ा है। उमेश चतुर्वेदी
द्वारा जयप्रकाश दूसरा तल, एफ.23 ए, निकट शिवमंदिर
कटवारिया सराय, नई दिल्ली.110016
द्वारा जयप्रकाश दूसरा तल, एफ.23 ए, निकट शिवमंदिर
कटवारिया सराय, नई दिल्ली.110016
उमेश चतुर्वेदी
लाइव इंडिया टीवी न्यूज चैनल में वरिष्ठ पद पर कार्यरत जी न्यूज इंडिया न्यूज सकाल ग्रुप ऑफ न्यूज पेपर्स दैनिक भास्कर और अमर उजाला में कार्य कर चुके हैं। मानव रचना इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता के प्राध्यापक रहे अब भी भारतीय जनसंचार संस्थान नई दिल्ली, केंद्रीय हिंदी संस्थान नई दिल्ली, रामजस कॉलेज दिल्ली, रामलाल आनंद कॉलेज दिल्ली में पत्रकारिता के विजिटिंग फेलो उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के लिए पत्रकारिता का पाठ्यक्रम लेखन माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के लिए दिनमान पत्रिका पर मोनोग्राफ का लेखन मोनोग्राफ सामयिक प्रकाशन से प्रकाशितए मीडिया पर आधारित बाजारवाद के दौर में मीडिया पुस्तक प्रकाशित और मीडिया हल्के में चर्चित हिंदी की समस्याए भारतीय भाषाओं के सामने चुनौती और उन्हें ताकत दिलाने के लिए लगातार लेखन क्रॉनिकल इयर बुक के लिए भाषा और संस्कृति खंड का लेखन मनोरमा ईयर बुक के लिए मीडिया पर तीन साल से लगातार लेखन तीन साल से विश्व हिंदी सचिवालय की वार्षिक पत्रिका विश्व हिंदी के लिए लेखन देश के सभी प्रमुख हिंदी पत्र.पत्रिकाओं में अब तक पांच हजार से ज्यादा लेख और संपादकीय टिप्पणियां प्रकाशित हिंदी विषय में एमए पत्रकारिता में भारतीय जनसंचार संस्थान नई दिल्ली से डिप्लोमा, पत्रकारिता और जनसंचार में परास्नातक
लाइव इंडिया टीवी न्यूज चैनल में वरिष्ठ पद पर कार्यरत जी न्यूज इंडिया न्यूज सकाल ग्रुप ऑफ न्यूज पेपर्स दैनिक भास्कर और अमर उजाला में कार्य कर चुके हैं। मानव रचना इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता के प्राध्यापक रहे अब भी भारतीय जनसंचार संस्थान नई दिल्ली, केंद्रीय हिंदी संस्थान नई दिल्ली, रामजस कॉलेज दिल्ली, रामलाल आनंद कॉलेज दिल्ली में पत्रकारिता के विजिटिंग फेलो उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के लिए पत्रकारिता का पाठ्यक्रम लेखन माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के लिए दिनमान पत्रिका पर मोनोग्राफ का लेखन मोनोग्राफ सामयिक प्रकाशन से प्रकाशितए मीडिया पर आधारित बाजारवाद के दौर में मीडिया पुस्तक प्रकाशित और मीडिया हल्के में चर्चित हिंदी की समस्याए भारतीय भाषाओं के सामने चुनौती और उन्हें ताकत दिलाने के लिए लगातार लेखन क्रॉनिकल इयर बुक के लिए भाषा और संस्कृति खंड का लेखन मनोरमा ईयर बुक के लिए मीडिया पर तीन साल से लगातार लेखन तीन साल से विश्व हिंदी सचिवालय की वार्षिक पत्रिका विश्व हिंदी के लिए लेखन देश के सभी प्रमुख हिंदी पत्र.पत्रिकाओं में अब तक पांच हजार से ज्यादा लेख और संपादकीय टिप्पणियां प्रकाशित हिंदी विषय में एमए पत्रकारिता में भारतीय जनसंचार संस्थान नई दिल्ली से डिप्लोमा, पत्रकारिता और जनसंचार में परास्नातक
कविता संग्रह: मैं सड़क हूं
कवि : अर्पण कुमार
प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर
मूल्य: 75 रूपए
कवि : अर्पण कुमार
प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर
मूल्य: 75 रूपए